नरहरी विष्णुशास्त्री “दाजी” पैंशिकार, जिन्हें भारतीय महाग्रंथों के गहन विश्लेषण के लिए जाना जाता था, का निधन महाराष्ट्र के ठाणे स्थित अपने आवास पर हुआ। परिवार के सदस्यों के अनुसार, वे कुछ दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे और अन्ततः निधन उन्होंने वहीं किया ।
उनका योगदान
- भारतीय उपमहाग्रंथों जैसे रामायण, महाभारत और संत काव्यों को समझाने व वितरित करने में उनका आध्यात्मिक व अध्ययन आधारित योगदान उल्लेखनीय रहा ।
- पाँच दशकों से अधिक का उनका लेखन-कर्म—उनकी चर्चित रचनाओं में “Unfamiliar Ramayana”, Mahabharata: Ek Sudacha Pravas, Karna: Khara Kon Thota?, ‘Kathamrut’ समेत अन्य पुस्तकें शामिल हैं ।
- उन्होंने करीब 2400 से ज़्यादा व्याख्यान भारत-विदेश में दिए और मराठी दैनिक सामना में सोलह वर्षों तक नियमित स्तंभ लिखा ।
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अन्य सोशल–संस्कृतिक गतिविधियाँ
- वे “नाट्यसंपदा नाट्य संस्था” के प्रबंधक के रूप में भी सक्रिय रहे, जो उनके बड़े भैया, अभिनेता प्रभाकर पैंशिकार द्वारा स्थापित थी ।
- साहित्य, संगीत, रंगमंच और सिनेमा के दुनिया में उन्होंने कई प्रमुख हस्तियों के साथ मिलकर कार्य किया ।
अंतिम विदाई
उनका अंतिम संस्कार आज गरिमापूर्ण माहौल में ठाणे वेस्ट के “जवाहर बाग” चिता स्थल पर संपन्न हुआ, जहां उनके परिवार व शिष्यों सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे ।
दाजी पैंशिकार 92 वर्ष की आयु में हमें छोड़कर चले गए, पर उनकी विषय–निष्ठा और बुद्धिमत्ता आज भी हमारी दिशा को मार्गदर्शन देती रहेगी।